Wednesday, January 5, 2011

सफ़र को चलने दो - प्रदीप विजयकर की याद मैं



प्रदीप को गये हुए कुछ चार दिन ही हुए है जब मैं ये ब्लॉग लिख रहा हू. प्रदीप विजयकर एक ऐसी शक्सियत थे जो एक पुराने उसूलों वाले पत्रकारिता जगत के रहनुमा माने जाते थे, जब सच्चाई सामने लाना पत्रकारों का उद्देश् होता था. क्या दौर रहा होगा वो जब गावसकर, वेंगसरकर सरीखे लोग क्रिकेट को एक जुनून की तरह खेलते थे. गावसकर के साथ प्रदीप की एक अलग ही दोस्ती थी. वो दोनो एक ही कॉलेज मैं पढ़े, एक ही कॉलेज टीम मैं खेले और शायद साथ साथ ही आगे चले, हालाँकि मुकाम अलग अलग था. सन्नी डेज़ किताब का काफ़ी कुछ अनुसंधान प्रदीप के घर पर ही हुआ था, और उसमे बहुत योगदान तो प्रदीप का ही था.

प्रदीप विजयकर जब इस फानी दुनिया से रुखसत हुए तो मैं वहीं था और लाचारी से उनको जाते हुए देख रहा था. रिश्ते मैं तो मैं उनका साढ़ू लगता था लेकिन उससे ज़्यादा ही उनको मानता था. कुछ अलग ही उनकी शक्सियत थी. जब भी मैं उनके घर मैं उनसे मिलता था, तो अपने ही ख़यालों मैं गुम रहते थे और कभी कभी बड़ी अजीब बातें करते थे, जो उनके रचनात्मक दिमाग़ की उपज होती थी. घर पर बोहत चुपचाप रहने वाला व्यक्ति जब क्रिकेट की रेडियो कॉँमेनटोरी करे तो ये बात मुझे कभी समझ नही आई. लेकिन ऐसा ही उनका अंदाज़ था. वो ही ऐसे पत्रकार थे जो मानते थे की अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी तो मैदान से ही निकलते हैं और उन्होने हमेशा मैदान से ही खिलाड़ियों को लेने की बात कही.
मेरा उनसे वास्ता पिछले चार साल से रहा है लेकिन वो एक रचनात्मक रिश्ता था. वो मेरे साथ मिलके एक किताब भी लिखने का सोचते थे. कभी कभी लगता है की मुझे अपने मौहौल से निकलकर उनके सपने को पूरा करना चाहिए.
प्रदीप कॅन्सर जैसी बीमारी से जुझारू होकर लड़ते रहे और कभी भी हार नहीं मानी. उन्होने अपना आखरी ब्लॉग १९ नवेंबर को लिखा था , जिसका लिंक है : http://blogs.timesofindia.indiatimes.com/Sportvicarious/entry/of-cricket-gupshup-and-commitment

उनके बारे मैं बहुत कुछ कहना है लेकिन कभी कभी शब्द नहीं मिलते. शायर इक़बाल ने जो कहा था वो प्रदीप के उपर लागू होता है;
खुदी को कर बुलंद इतना
की हर तक़दीर से पहले
खुदा बंदे से पूछे
बता तेरी रज़ा क्या है

उनकी ज़िंदगी बुलंदियों का सफ़र था जो की एक अमर दास्तान बनकर मुझे हमेशा रास्ता दिखता रहेगा

ये सफ़र अभी शुरू हुआ है
चरागों को जलने दो
ये रोशनी तो उनका अक्स है
सफ़र को चलने दो